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भारतीय राजनीति में मतदाता सूची हमेशा से एक संवेदनशील और विवादित विषय रहा है। मतदाता सूची का शुद्धिकरण या विशेष गहन पुनरीक्षण अक्सर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का कारण बनता रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर दिए गए आदेश के बाद भाजपा और विपक्ष के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है।

मालवीय ने कहा, निर्वाचन आयोग से आधार को स्वचालित मतदाता नामांकन के लिए एक दस्तावेज के रूप में शामिल करने का अनुरोध करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 और आधार अधिनियम को निरर्थक बना देगा। असल में शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को यह निर्णय दिया था कि आधार नागरिकता साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है।

वही, मालवीय ने यह भी कहा-, निर्वाचन आयोग से आधार को स्वचालित मतदाता नामांकन के लिए एक दस्तावेज के रूप में शामिल करने का अनुरोध करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 और आधार अधिनियम को निरर्थक बना देगा। असल में शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को यह निर्णय दिया था कि आधार नागरिकता साबित करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है।

आधार पर विवाद क्यों?

अमित मालवीय ने स्पष्ट किया कि आधार केवल पहचान और निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं। उन्होंने विपक्ष पर दुष्प्रचार करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। मालवीय ने यह भी याद दिलाया कि शीर्ष अदालत ने 12 अगस्त को दिए अपने फैसले में साफ कहा था कि आधार नागरिकता साबित करने का कोई कानूनी दस्तावेज नहीं है।

बता दें कि, भाजपा नेता मालवीय ने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा ही नहीं है, उसे अदालत के नाम पर प्रचारित करना उसकी अवमानना के बराबर है। उन्होंने कहा – “सच्चाई बिल्कुल साफ है। केवल आधार से नाम जुड़ने का प्रावधान नहीं है। SIR की प्रक्रिया जारी है और इसमें मृत, फर्जी और विदेशी नाम हटाए जा रहे हैं।”

वही,भाजपा का दावा है कि बिहार में मसौदा मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए गए हैं। इनमें फर्जी नाम, मृत मतदाता, बांग्लादेशी और रोहिंग्या शामिल हैं। मालवीय ने कहा कि यह कदम लोकतंत्र को शुद्ध करने और केवल वास्तविक भारतीय नागरिकों को मतदान का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार यदि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, या उसे किसी सक्षम न्यायालय द्वारा मानसिक रूप से विक्षिप्त घोषित किया गया है, या वह चुनाव में भ्रष्ट आचरण और अपराध से संबंधित कानूनों के तहत दोषी है, तो उसे मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने से अयोग्य कर दिया जाएगा। यही नियम आज भी लागू है।

कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश और भाजपा-विपक्ष की बयानबाजी एक बार फिर यह साबित करती है कि भारत में मतदाता सूची का सवाल केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि गहराई तक राजनीतिक और संवेदनशील मुद्दा है। भाजपा का जोर है कि केवल भारतीय नागरिक ही अगली सरकार चुनें और विदेशी तत्वों को बाहर किया जाए। वहीं विपक्ष का तर्क है कि भाजपा इस बहाने लाखों वास्तविक भारतीय नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकती है।

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