आज़ादी के बाद पहली बार कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक पटना में आयोजित हुई है। इसे महज एक संगठनात्मक बैठक नहीं, बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के बड़े शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी ने इसे अपने पुनरुत्थान का प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों तरह का मंच बनाया है।
जानकारी दे दें कि, 24 सितंबर को आयोजित इस बैठक से पहले 23 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने साफ किया कि यह बैठक बिहार में पार्टी के लिए नई ऊर्जा का स्रोत बनेगी. उन्होंने कहा कि जैसे 2023 में तेलंगाना में बड़ी बैठक के बाद कांग्रेस ने सत्ता हासिल की, वैसी ही उम्मीद यहां भी है. दरअसल, इस बैठक के जरिए पार्टी ने संकेत दिया है कि वह गठबंधन की राजनीति में अब हाशिए पर नहीं रहेगी.
बिहार में कांग्रेस का ‘तेलंगाना मॉडल’
तेलंगाना में 2023 में हुई बड़ी बैठक के बाद कांग्रेस ने सत्ता हासिल की थी। अब पार्टी उसी रणनीति को बिहार में दोहराने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस का मकसद साफ है—वह गठबंधन की राजनीति में केवल “सहयोगी दल” की भूमिका तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि खुद को चुनावी राजनीति के केंद्र में स्थापित करना चाहती है।
बता दें कि, पटना में आयोजित यह ऐतिहासिक CWC बैठक कांग्रेस के लिए सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति का केंद्रबिंदु है। आज़ादी की यादों से जुड़ी जगह से कांग्रेस ने यह संदेश दिया है कि वह अपनी जड़ों से जुड़कर भविष्य की राजनीति की नई पटकथा लिखने के लिए तैयार है।
