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श्योपुर जिले के कराहल विकासखंड के ग्राम खिरखिरी में 29 सितम्बर 2025 को पराली प्रबंधन के लिए विशेष कृषक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को पराली जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों और उसके विकल्पों के बारे में जागरूक करना था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने विस्तार से बताया कि पराली जलाने से न केवल पर्यावरण को नुकसान होता है, बल्कि किसानों की अपनी जमीन की उपजाऊ शक्ति भी कम होती है।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने जानकारी दी कि पराली जलाने से पर्यावरण में प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर होती है। मिट्टी में उपलब्ध लाभदायक जीवाणु, फंगस, मित्र कीट, कार्बनिक पदार्थ जलकर नष्ट हो जाते है। जिससे जमीन कठोर एवं मृत हो रही है तथा मिट्टी का तापमान बढ़ रहा है। पराली जलाने से कोई लाभ नही है। बल्कि इसके कई हानिकारक प्रभाव है।

बता दें कि, किसानों से अपील की गई कि किसान भाई धान की पराली में आग नहीं लगाएं, बल्कि इसका उचित प्रबंधन करे। धान की पराली से कम्पोस्ट खाद भी तैयार की जा सकती है। कृषक ज्यादा से ज्यादा सुपर सीडर यंत्र के आवेदन ऑनलाइन करें ,जिससे धान की पराली का प्रभावी नियंत्रण हो सके। हार्वेस्टर में एस.एम.एस सिस्टम का उपयोग करने की सलाह दी गई।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पराली जलाना किसानों के लिए अल्पकालिक सुविधा तो प्रतीत होता है, लेकिन इसके दुष्परिणाम गंभीर हैं।

  1. मिट्टी की उर्वरता घटती है – पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक जीवाणु, फंगस और मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं।
  2. कार्बनिक पदार्थ समाप्त होते हैं पराली जलने से मिट्टी में मौजूद कार्बनिक तत्व कम होते हैं, जिससे भूमि बंजर होने लगती है।
  3. पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है – वायु में हानिकारक गैसें और धुआं फैलता है, जिससे मानव स्वास्थ्य और जलवायु दोनों प्रभावित होते हैं।
  4. जमीन कठोर होती है – बार-बार पराली जलाने से मिट्टी का तापमान बढ़ता है और जमीन की नमी भी कम होती है।

विशेषज्ञों ने स्पष्ट कहा कि पराली जलाने से कोई लाभ नहीं, बल्कि यह किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है।

जानकारी दे दें कि, श्योपुर जिले में आयोजित यह कार्यक्रम एक सार्थक पहल साबित हुआ। किसानों ने पराली प्रबंधन के महत्व को समझा और कई किसानों ने मौके पर ही सुपर सीडर जैसे यंत्रों को अपनाने की इच्छा जताई। पराली समस्या पूरे देश में गंभीर रूप ले चुकी है, लेकिन यदि हर किसान अपने स्तर पर जिम्मेदारी निभाए तो यह समस्या समाधान की ओर बढ़ सकती है।

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