पेरिस की सड़कों पर गुरुवार का दिन एक ऐतिहासिक जनआंदोलन का गवाह बना। फ्रांस सरकार द्वारा प्रस्तावित अगले वर्ष के बजट में भारी कटौती की योजना का विरोध करते हुए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस हड़ताल और विरोध मार्च में लगभग 85 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया।
विरोध की मुख्य वजहें
प्रदर्शनकारियों और ट्रेड यूनियनों की मांगें स्पष्ट हैं:
- सार्वजनिक सेवाओं पर अधिक खर्च:
यूनियन नेताओं का कहना है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में पहले से ही संसाधनों की कमी है। बजट कटौती इन सेवाओं को और कमजोर कर देगी। - सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि को वापस लेना:
फ्रांस में पिछले वर्ष ही सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु को 62 से बढ़ाकर 64 वर्ष कर दिया था, जिसे लेकर पहले भी देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था। यूनियनें इसे श्रमिकों पर अन्यायपूर्ण बोझ मानती हैं। - अमीरों पर अधिक कर लगाना:
यूनियन नेताओं का कहना है कि सरकार को आम जनता की बजाय अमीरों और बड़ी कंपनियों से अधिक कर वसूलना चाहिए, ताकि आर्थिक असमानता कम हो और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
फ्रांस यूरोप का वह देश है जहाँ श्रमिक आंदोलनों और जनविरोध की लंबी परंपरा रही है। 1968 के ऐतिहासिक छात्र-श्रमिक आंदोलनों से लेकर हाल ही में सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के खिलाफ हुए प्रदर्शनों तक, फ्रांसीसी समाज हमेशा सामाजिक न्याय के मुद्दों पर सक्रिय रहा है।
बता दें कि, फ्रांस में हो रहे इस विरोध ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब नीतियां आम नागरिकों और श्रमिकों के हितों के खिलाफ जाती हैं, तो जनता लोकतंत्र के सबसे बड़े हथियार—विरोध—का सहारा लेती है। पेरिस की सड़कों पर उतरे हजारों लोगों का यह संदेश स्पष्ट है कि वे समानता, सामाजिक न्याय और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करने को तैयार हैं। आने वाले दिनों में यह आंदोलन फ्रांस की राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों पर गहरा असर डाल सकता है।