हमेशा की तरह एक बार फिर कांग्रेस कर्नाटक राज्य में लड़खड़ाई हुई सी नजर आ रही है। इन खबरों ने एक बात को तो साबित कर दिया है कि बीजेपी की तुलना में कांग्रेस का शीर्ष संगठन कितना कमजोर है कि सरकार बिखरने जैसी नौबत आ जाती है। मध्यप्रदेश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जो करीब 15 साल बाद सत्ता में आने के बाद सरकार गिर जाती है। फिलहाल कर्नाटक में कांग्रेस के विधायक मुखर हैं लेकिन सरकार गिरने जैसी स्थिति नजर नहीं आ रही है लेकिन निकट भविष्य में क्या होगा कहा नहीं जा सकता है।
बैंगलोर। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार बनने को कुछ ही महीने हुए हैं इसी बीच राज्य की राजनीति में हलचलें तेज़ हो गई हैं। पिछले कई दिनों से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के गुटों के बीच खींचतान की ख़बरें लगातार मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं। इन अफवाहों के बीच यह कयास लगाए जाने लगे कि कांग्रेस आलाकमान राज्य में नेतृत्व परिवर्तन कर सकता है और सिद्धारमैया की जगह डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हालांकि अब कांग्रेस ने इन तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ कर दिया है कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद पर कोई बदलाव नहीं होने जा रहा है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए पार्टी नेताओं को संयम बरतने की सलाह दी थी। सोमवार को जारी अपने बयान में खरगे ने कहा, “ऐसे मामलों पर फैसला पार्टी का आलाकमान करेगा। किसी को भी अनावश्यक विवाद खड़ा नहीं करना चाहिए।”
बता दें कि, कर्नाटक में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों और असंतोष की खबरों के बीच कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी विधायकों के साथ बैठकें की थीं। हालांकि, पार्टी की ओर से दावा किया गया है कि ये सिर्फ संगठन से जुड़ी बैठक है। सरकार के प्रोग्राम और फ्री गारंटी लोगों तक पहुंच रही है कि नहीं ये जानने के लिए मीटिंग हुई है।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की अटकलें अब पूरी तरह थम गई हैं। रणदीप सुरजेवाला के बयान के बाद साफ हो गया है कि सिद्धारमैया ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। हालांकि पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अंदरूनी मतभेदों को नियंत्रण में रखा जाए और सरकार के कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाकर अपना आधार मजबूत किया जाए।