नेपाल इस समय अपने इतिहास के सबसे बड़े राजनीतिक और सामाजिक संकटों में से गुजर रहा है। युवाओं के नेतृत्व में शुरू हुआ यह आंदोलन अचानक भले ही भड़कता दिखाई दे, लेकिन इसकी जड़ें लंबे समय से फैले भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता और जनता की नाराज़गी में हैं।
बता दें कि, सेना के हेलिकॉप्टरों ने कुछ मंत्रियों को सुरक्षित ठिकानों पर पहुंचाया, मगर हालात अब भी नाजुक हैं। राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने भी प्रदर्शनकारियों से शांति और बातचीत की अपील की। नेपाल की इस अशांति का असर भारत पर भी पड़ रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नेपाल सीमा पर सुरक्षा कड़ी करने के आदेश दिए है
संसद भवन में आग, नेताओं पर हमले
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उन्होंने संसद भवन में आग लगा दी और कई सरकारी इमारतों पर हमला बोल दिया। नेताओं के आवास भी भीड़ के निशाने पर आए। मंगलवार को स्थिति और भयावह हो गई जब प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा पर हमला किया।
हालात बेकाबू होते देख नेपाल सरकार ने सेना को तैनात कर दिया। मंगलवार रात से सेना ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, सिंहदरबार और अन्य अहम सरकारी ठिकानों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने एक वीडियो संदेश जारी कर जनता से शांति की अपील की। उन्होंने कहा – हमें मिलकर देश को इस मुश्किल घड़ी से निकालना है। हिंसा से केवल नुकसान होगा। बातचीत का रास्ता ही समाधान है।”
भारतीय यात्री फंसे, फ्लाइटें रद्द
नेपाल की अशांति का असर हवाई सेवाओं पर भी पड़ा है। काठमांडू स्थित त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद कर दिया गया है। इसके चलते एअर इंडिया और इंडिगो की उड़ानें रद्द कर दी गईं।
इसी बीच, कर्नाटक के 39 यात्री काठमांडू हवाई अड्डे पर फंसे हुए हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने उनकी सुरक्षित वापसी के लिए विदेश मंत्रालय से तुरंत हस्तक्षेप करने को कहा है। भारतीय दूतावास यात्रियों के संपर्क में है।
नेपाल आज संकट की चौराहे पर खड़ा है। प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बावजूद शांति नहीं लौटी है। सेना की तैनाती और राष्ट्रपति की अपील के बाद भी जनता का गुस्सा थमता दिखाई नहीं दे रहा। बताते चले कि, भारत के लिए भी यह स्थिति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि नेपाल केवल पड़ोसी देश ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और रणनीतिक साझेदार भी है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या नेपाल सरकार बातचीत और सुधारों के जरिए जनता का भरोसा जीत पाएगी या हालात और बिगड़ेंगे।