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महाराष्ट्र की सत्ता में साझेदार महायुति गठबंधन के भीतर एक बार फिर तनाव की आहट सुनाई दे रही है। ताजा विवाद की चिंगारी तब भड़की जब राज्य के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने सार्वजनिक मंच से अपने सहयोगी दलों को नसीहत देते हुए कहा कि “गठबंधन धर्म का पालन किया जाना चाहिए।” यह बयान आते ही राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई कि महायुति में सब कुछ वैसा नहीं है, जैसा दिखाने की कोशिश की जा रही है।

कुछ ही दिनों बाद रूपसिंह धाल, आनंद ढोके, शिल्पारानी वाडकर और अनमोल म्हात्रे समेत शिवसेना के कई नेता BJP में शामिल हो गए। किसी ने खुलकर कुछ कहा नहीं, लेकिन ये स्पष्ट हो गया था कि अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चर्चा तब ज्यादा होने लगी, जब मुंबई निकाय चुनाव की तैयारियों के लिए फडणवीस और शिंदे एक ही होटल में ठहरे थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे से मुलाकात नहीं की।

कैसे शुरू हुआ विवाद? शिवसेना में बगावत से सत्ता तक का सफर

महायुति की आज की स्थिति को समझने के लिए इसकी जड़ें 2022 की राजनीतिक उथल-पुथल में खोजनी होंगी। तब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के कई विधायकों ने बगावत कर दी थी, जिसके बाद पार्टी दो हिस्सों में बंट गई—एक शिंदे के साथ और दूसरा उद्धव ठाकरे के साथ।

राजनीतिक गलियारों में दावा किया गया कि इस बगावत के पीछे बीजेपी की रणनीतिक भूमिका रही। उसके बाद महाराष्ट्र में बीजेपी–शिवसेना (शिंदे गुट) की सरकार बनी और शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली, जबकि देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया। बाद में अजित पवार भी इस गठबंधन का हिस्सा बने और एक विस्तृत महायुति का निर्माण हुआ।

कुछ ही दिनों बाद रूपसिंह धाल, आनंद ढोके, शिल्पारानी वाडकर और अनमोल म्हात्रे समेत शिवसेना के कई नेता BJP में शामिल हो गए। किसी ने खुलकर कुछ कहा नहीं, लेकिन ये स्पष्ट हो गया था कि अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चर्चा तब ज्यादा होने लगी, जब मुंबई निकाय चुनाव की तैयारियों के लिए फडणवीस और शिंदे एक ही होटल में ठहरे थे, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे से मुलाकात नहीं की।

फडणवीस ने स्थिति संभालने की कोशिश की, पर शिंदे का बयान क्यों आया?

जब हालात बेकाबू होने लगे तो देवेंद्र फडणवीस आगे आए और दोनों दलों के नेताओं के साथ बैठकें कर तनाव कम करने की कोशिश की। हालांकि, स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष प्रसारित होता रहा। कई मौकों पर शिवसेना कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि उनकी अनदेखी की जा रही है और बीजेपी उन्हें तोड़ने में लगी है।

गठबंधन धर्म की चुनौती और नेतृत्व की जंग

एकनाथ शिंदे का बयान गठबंधन की आंतरिक चुनौतियों को उजागर करता है।
मुख्य चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:

1. सत्ता-साझेदारी (Power Sharing)

शिंदे समर्थक मानते हैं कि उनकी राजनीतिक ताकत के मुताबिक उन्हें निर्णय लेने में अधिक भूमिका मिलनी चाहिए।

2. स्थानीय स्तर पर बीजेपी का बढ़ता प्रभाव

बीजेपी अपने कैडर का विस्तार करने में लगी है, जिसका सीधा असर शिवसेना के वजूद पर पड़ रहा है।

3. निकाय चुनावों की तैयारियाँ

बीएमसी चुनाव में दोनों दल की रणनीतियाँ परस्पर विरोधी दिख रही हैं।

4. नेतृत्व को लेकर असमंजस

फडणवीस-शिंदे संबंध शुरू से ही औपचारिक रहे हैं, और चुनाव के बाद यह दूरी बढ़ती दिख रही है।

बता दें कि, एकनाथ शिंदे का “गठबंधन धर्म” वाला बयान सिर्फ एक सरल टिप्पणी नहीं, बल्कि गठबंधन में बढ़ते तनाव का स्पष्ट संकेत है। बीजेपी और शिवसेना (शिंदे गुट) की अंदरूनी खींचतान अब सतह पर आ चुकी है। बीएमसी चुनाव, सत्ता-साझेदारी और दल-बदल जैसे मुद्दे आने वाले समय में महायुति के स्वरूप को तय करेंगे।

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