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Tamil Nadu Election रामनवमी के दिन पंबन ब्रिज के उद्घाटन के सहारे भाजपा ने चुनावी सरगर्मी बढ़ा दी है। हिंदू बहुल आबादी वाले इस राज्य में भाजपा ने दो बड़े संदेश लेकर प्रवेश करने का संकेत दिया है। पहला अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक उत्तर से दक्षिण भारत तक सनातनी भावनाओं में उभार लाना और दूसरा तमिलनाडु के विकास के लिए संकल्पबद्धता।

। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद तमिलनाडु की बारी है। तैयारियों के लिहाज से अब कुछ ही महीने बाकी हैं। ऐसे में श्रीलंका से सीधे रामेश्वरम पहुंचकर तमिलनाडु में अनोखे समुद्री सेतु के उद्घाटन के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनाव का टोन भी सेट कर दिया है।

विधानसभा की 234 सीटों वाले दक्षिण के इस सबसे बड़े राज्य में प्रभावी हस्तक्षेप के लिए भाजपा विकास और आस्था के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों से समन्वय का भी सहारा लेने जा रही है। किंतु भाजपा के सामने डीएमके की क्षेत्रीयता और द्रविड़ पहचान की राजनीति दीवार बनकर खड़ी है।

फिर भी भाजपा का प्रारंभिक प्रयास बता रहा कि इस बार चुनौती कमजोर नहीं होगी। हिंदी और सनातन विरोधी डीएमके की संकीर्ण क्षेत्रीय सियासत को निस्तेज करने के लिए भाजपा एक ही साथ कई फार्मूले पर काम करते दिख रही है।

डीएमके की स्टालिन सरकार ने जिस तरह से परिसीमन एवं भाषा के मुद्दे पर केंद्र सरकार से मोर्चा ले रखा है, उससे स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव में क्षेत्रवाद की संकीर्ण राजनीति के सहारे ही वह आगे बढ़ने की तैयारी में है। भाजपा ने भी अन्नामलाई के आक्रामक नेतृत्व में राष्ट्रवाद की भावना के साथ पिछले कुछ समय से क्षेत्रीय दलों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।

लोकसभा की 39 सीटों वाला यह राज्य दक्षिण में भाजपा के विस्तार में बड़ी बाधा बनकर खड़ा है। लगभग एक दशक से भाजपा के सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं।

हालांकि के. अन्नामलाई के आक्रामक नेतृत्व में भाजपा के सघन संघर्ष ने 2024 के लोकसभा चुनाव में लगभग 11 प्रतिशत वोट प्राप्त कर कुछ उम्मीद जरूर जगाई है। फिर भी भाजपा के लिए दिल्ली से तमिलनाडु की दूरी कम होती नहीं दिख रही है। मगर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की कोशिशें बता रही हैं कि वह भी हार मानने वालों में नहीं है।

क्या है भाजपा की रणनीति?

रामनवमी के दिन पंबन ब्रिज के उद्घाटन के सहारे भाजपा ने चुनावी सरगर्मी बढ़ा दी है। हिंदू बहुल आबादी वाले इस राज्य में भाजपा ने दो बड़े संदेश लेकर प्रवेश करने का संकेत दिया है। पहला अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक उत्तर से दक्षिण भारत तक सनातनी भावनाओं में उभार लाना और दूसरा तमिलनाडु के विकास के लिए संकल्पबद्धता। क्षेत्रीय दलों के साथ समन्वय की संभावनाओं को भी टटोला जा रहा है, लेकिन उसमें अभी जल्दीबाजी नहीं दिख रही है।


दक्षिण में तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां के राजनीतिक बिसात से दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां लगभग पूरी तरह गायब हैं। राज्य की राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके ही अरसे से हावी है। उत्तर भारत में मजबूत पकड़ रखने वाली भाजपा तो कभी अपने दम पर सरकार में रही ही नहीं और कांग्रेस की कहानी भी 1967 के बाद से आगे नहीं बढ़ पाई।
कांग्रेस की अंतिम सरकार एम भक्तवत्सलम के नेतृत्व में 1963 में बनी थी, जो छह मार्च 1967 तक चली। उसके बाद से सवा सौ साल की यह पुरानी पार्टी किसी न किसी क्षेत्रीय दल की पिछलग्गू बनकर ही रही। कांग्रेस अभी भी डीएमके के साथ सरकार में है और भाजपा दस्तक के लिए भी संघर्ष करती नजर आ रही है।






































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