नई दिल्ली। मुंबई हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पित कर भारत लाए जाने के बाद एक तरफ तो कांग्रेस श्रेय लेने की होड़ में जुटी है लेकिन विपक्षी दलों और नेताओं का रुख सवाल भी खड़ा करता है। खुद राहुल गांधी या पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से इस बाबत कोई ट्वीट नहीं हुआ।
राणा की सुनवाई में भेदभाव नहीं होना चाहिए
खुद कांग्रेस के ही नेता व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने राणा की वापसी से पहले ही यह अपील कर दी कि राणा की सुनवाई में भेदभाव नहीं होना चाहिए। उनकी इस नरमी पर कांग्रेस के अंदर भी चुप्पी है।
वहीं विपक्षी गठबंधन में शामिल राजद, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। समाजवादी पार्टी की तरफ से सांसद डिंपल यादव ने जरूर खुशी जाहिर की .
पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कही ये बात
तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर इसे भारत सरकार की कूटनीतिक विफलता करार दिया था। 2020 में भारत सरकार की ओर से फिर से कवायद हुई थी बाद में कुछ अन्य सबूत पेश किए जाने के बाद राणा का प्रत्यर्पण संभव हुआ।
26 नवंबर की घटना के बाद 11 दिसंबर को संसद में इस पर चर्चा हुई थी। लालकृष्ण आडवाणी ने इस चर्चा की शुरूआत की थी। तब भाजपा के साथ साथ वामदल आक्रामक थे और इसे खुफिया और सुरक्षा चूक का बड़ा उदाहरण बताते हुए गृहमंत्री का इस्तीफा भी मांगा था।
भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने बड़ा सवाल खड़ा किया था
भाकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने बड़ा सवाल खड़ा किया था और कहा था कि पांच दिन पहले ही रक्षा मंत्री एके एंटनी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि समुद्र के रास्ते आतंक के खतरे हैं फिर भी सरकार सचेत नहीं थी। तब समाजवादी पार्टी सरकार से बाहर तो थी लेकिन समर्थन दे रही थी। इसलिए उसके सदस्य रामजीलाल सुमन ने भी इसे तत्कालीन सरकार की विफलता बताया था इस्तीफे की मांग से दूर रहे थे। अब चुप्पी है जब जब उस घटना का मास्टरमाइंड सजा पाने के करीब है।
राजद के सदस्य डीपी यादव ने सभी प्रकार के आतंकी ढांचे को खत्म करने की बात कही थी लेकिन नाम सिर्फ अभिनव भारत का लिया था। उसमें सिमी समेत दूसरे संगठनों के नाम नहीं लिए। तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव और भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा के बीच कंधार घटना को लेकर जंग छिड़ गई थी।
कंधार की घटना पर हुई थी तीखी चर्चा
मल्होत्रा ने कहा था कि कंधार की घटना लोगों की जान बचाने के लिए थी और उस फैसले में खुद लालू यादव भी शामिल थे। पूरी चर्चा का जवाब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दिया था और उससे ठीक पहले चिदंबरम ने माना था कि चूक तो हुई है।