11 नवंबर मंगलवार की सुबह जब मोबाइल हाथ में उठाया तो मैंने देखा कि धर्मेंद्र साहब की मौत की खबर ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर स्क्रीनों पर चमक रही है, तो मन में एक गहरा दर्द हुआ। दर्द सिर्फ़ इसलिए नहीं कि एक झूठी खबर फैलाई गई, बल्कि इसलिए कि हमारी मीडिया ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि उसके लिए सत्य की कोई कीमत नहीं। धर्मेंद्र साहब जिंदा हैं। उनकी साँसें चल रही हैं। लेकिन उनकी मौत का ऐलान कर दिया गया—बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के, बिना किसी जिम्मेदारी के।

ओमप्रकाश (ओपी) पवार
जर्नलिस्ट, सोशल वर्कर, पीआर एक्सपर्ट
ये क्या है? ये पत्रकारिता नहीं, ये व्यापार है। टीआरपी का व्यापार। सनसनी का व्यापार। जहां एक मिनट की देरी भी घाटे का सौदा लगती है। इसलिए पहले खबर चलाओ, फिर माफ़ी मांग लो। लेकिन माफ़ी से क्या होता है? जो भरोसा टूटता है, वो लौटकर नहीं आता। जो परिवार को तकलीफ़ पहुँचती है, वो मिटती नहीं। और जो समाज अफवाहों के जाल में फंसता है, वो सच से दूर होता चला जाता है।
मीडिया के साथियों से भी कहना चाहता हूं कि आपका काम है सवाल उठाना, तथ्य जांचना, स्रोत की पुष्टि करना। आपका काम है समाज को जोड़ना, न कि उसे भय और भ्रम में डुबोना। लेकिन आपने क्या किया? एक अनाम सोर्स, एक व्हाट्सएप मैसेज, एक ट्वीट—इन्हीं को ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया। और दर्शक? दर्शक भी कम जिम्मेदार नहीं। बिना सोचे-समझे शेयर करना, बिना पूछे आगे बढ़ाना—ये भेड़चाल नहीं तो और क्या है?
सोचिए.. धर्मेंद्र साहब के बारे में देश के बड़े नामी पत्रकारों समेत कई राजनीतिक हस्तियों ने भी वही किया, मतलब हर कोई भेड़चाल में शामिल नजर आया। हद तो तब जब कुछ सांसदों ने भी अपने साथी सांसद के पति के बारे में बिना पुष्टि के श्रद्धांजलि दे दी। आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों की गई? ये महज एक छोटी सी घटना नहीं है ये बताता है कि हम जाने अनजाने में कितने छूठ समाज में परोसे जाते होंगे और भोली भावी जनता उसी को सच मान लेती होगी।
मीडिया कितना नाटकीय हो गया है जब धर्मेंद्र जी की झूठी खबर परोसी जा रही थी मैं देख रहा था कि कैसे नाटकीय तरीके से चैनलों के बड़े एंकर सुबह से झूठी और बनावटी संवेदनाओं का ढोंग कर रहे थे। इसी बीच सोचिए उस परिवार पर क्या गुजर रही होगी जो अस्पताल के अंदर औऱ बाहर अच्छी सेहत के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे। खुद धर्मेंद्र जी की पत्नी हेमा मालिनी जी और उनकी बेटी ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दी कि आखिर ये चल क्या रहा है।
ये जल्दबाजी खतरनाक है। ये न सिर्फ़ व्यक्तियों का अपमान करती है, बल्कि लोकतंत्र की नींव को कमजोर करती है। क्योंकि जब मीडिया सच नहीं बोलता, तो लोग कहां जाएंगे? धर्मेंद्र साहब जैसे कलाकार हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। उनकी जिंदगी का सम्मान कीजिए। उनकी मौत का ऐलान करने से पहले कम से कम इतना तो कीजिए कि सत्य की प्रतीक्षा कर लीजिए। सोचिए। जांचिए। सत्य का इंतज़ार कीजिए। क्योंकि अगर आप जल्दबाजी करेंगे, तो एक दिन यही जल्दबाजी आपकी विश्वसनीयता को हमेशा के लिए दफ़्न कर देगी।
लेखक
ओमप्रकाश (ओपी) पवार
जर्नलिस्ट, सोशल वर्कर, पीआर एक्सपर्ट