नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को एक बार फिर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए भारतीय राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने केंद्र पर राज्यपालों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए इसे संघवाद पर “खतरनाक हमला” बताया है। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा कि राज्य सरकारों की आवाज दबाने के लिए राज्यपालों को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जो कि भारतीय संविधान और संघीय ढांचे के खिलाफ है।
राहुल गांधी का तीखा बयान
“राज्यपालों का उपयोग राज्य सरकारों के कार्यों में बाधा डालने और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों की आवाज को दबाने के लिए किया जा रहा है। यह भारत के संघवाद पर खतरनाक हमला है। इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। भारत की ताकत उसकी विविधता और राज्यों की स्वतंत्र आवाज़ों में है।”राहुल गांधी ने इस बयान के साथ तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन की एक पोस्ट को भी टैग किया, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्यपाल अब भाजपा के राजनीतिक उपकरण बन चुके हैं।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने बयान में कहा:-“राज्यपालों की भूमिका अब निष्पक्ष संवैधानिक प्रमुख के रूप में नहीं रही, बल्कि वे भाजपा के इशारों पर काम कर रहे हैं। यह न केवल राज्य सरकारों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों के भी विरुद्ध है।”
स्टालिन का यह बयान उस वक्त आया जब तमिलनाडु की विधानसभा में एक विधेयक को राज्यपाल द्वारा अनिश्चितकाल के लिए लंबित रखा गया था। यह मामला उन कई घटनाओं की श्रृंखला का हिस्सा है जहाँ विभिन्न गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है।
संघवाद बनाम केंद्रीकरण: एक पुरानी बहस
भारत का संविधान एक संघीय ढांचे की स्थापना करता है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारों का स्पष्ट वितरण है। हालांकि, हाल के वर्षों में राज्यपालों की भूमिका को लेकर कई बार विवाद खड़े हुए हैं, विशेषकर उन राज्यों में जहां भाजपा सत्ता में नहीं है।
राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 153 से 162 के अंतर्गत कार्य करते हैं और सामान्यतः उन्हें राज्य का नाममात्र प्रमुख माना जाता है, लेकिन जब वे राज्य विधानसभाओं के बिलों को रोकते हैं या राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिशों को नजरअंदाज करते हैं, तो सवाल उठते हैं कि क्या वे निष्पक्ष रह पा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट राय
सुप्रीम कोर्ट ने भी पूर्व में कहा है कि राज्यपालों को राजनीतिक उद्देश्यों से नहीं, बल्कि संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करना चाहिए। न्यायपालिका ने राज्यपालों से अपेक्षा की है कि वे संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें और राज्यों की स्वायत्तता का सम्मान करें।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की एकजुटता
राहुल गांधी का बयान ऐसे समय आया है जब विपक्षी गठबंधन INDIA लगातार केंद्र सरकार पर संघीय ढांचे को कमजोर करने का आरोप लगाता आ रहा है। इससे पहले भी पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल और दिल्ली जैसे राज्यों में राज्यपालों की भूमिका को लेकर विवाद सामने आए हैं।
इन सभी घटनाओं को एक साथ जोड़ें, तो यह स्पष्ट होता है कि विपक्षी पार्टियां केंद्र पर “संवैधानिक संस्थाओं के राजनीतिकरण” का आरोप लगा रही हैं।
क्या कहती है केंद्र सरकार?
हालांकि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की ओर से कोई ताजा बयान नहीं आया है, लेकिन पहले ऐसे मामलों में सरकार यह कह चुकी है कि राज्यपाल स्वतंत्र संवैधानिक पद होते हैं और वे अपने विवेक के अनुसार कार्य करते हैं। भाजपा अक्सर यह भी तर्क देती है कि कई बार राज्य सरकारें विधेयकों और निर्णयों में कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं करतीं, जिसके कारण राज्यपाल हस्तक्षेप करने को विवश होते हैं।