कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भारतीय राजनीति में वंशवाद (Dynasty Politics) को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि जब तक भारत की राजनीति परिवारों की जायदाद बनी रहेगी, तब तक लोकतंत्र का असली वादा — “जनता की सरकार, जनता द्वारा, जनता के लिए” — पूरा नहीं हो सकेगा। थरूर ने राजनीति में योग्यता (Merit) को प्राथमिकता देने और राजनीतिक दलों में गहराई से सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने लिखा है कि भारत जैसा बड़ा लोकतंत्र जब इस वंशवाद को अपनाता है तो यह और भी विरोधाभासी लगता है। थरूर ने लिखा कि परिवार एक ब्रांड की तरह काम करता है, लोगों को उन्हें पहचानने और उन पर भरोसा करने में समय नहीं लगता। इसी वजह से ऐसे उम्मीदवारों को वोट मिल जाता है।
‘लोकतंत्र परिवारों की संपत्ति नहीं हो सकता’
शशि थरूर ने कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में सत्ता का हस्तांतरण परिवारों के भीतर सीमित रहना लोकतांत्रिक आदर्शों के विपरीत है। उन्होंने कहा —
“लोकतंत्र का वादा तभी सार्थक होगा जब देश में नेतृत्व पारिवारिक विरासत से नहीं, बल्कि जनता की पसंद और उम्मीदवार की योग्यता से तय होगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह समस्या किसी एक राजनीतिक दल की नहीं है, बल्कि पूरे राजनीतिक ढांचे में फैली हुई है।
“जब किसी उम्मीदवार की सबसे बड़ी पहचान उसका उपनाम (Surname) बन जाती है, तो योग्यता और क्षमता पीछे छूट जाती है। नतीजा यह होता है कि शासन की गुणवत्ता गिरने लगती है और लोकतंत्र कमजोर पड़ता है।”
‘सुधार जरूरी हैं — सीमित कार्यकाल और आंतरिक चुनाव’
थरूर ने राजनीतिक दलों से आंतरिक लोकतंत्र (Internal Democracy) को मजबूत करने की अपील की। उन्होंने सुझाव दिया कि पार्टियों में नेताओं के कार्यकाल की सीमा तय की जानी चाहिए और पार्टी नेतृत्व का चुनाव पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।
उनके अनुसार, “जब तक राजनीतिक पार्टियां खुद के भीतर लोकतंत्र को नहीं अपनातीं, तब तक देश में सच्चा लोकतंत्र पनप नहीं सकता। सत्ता कुछ लोगों या परिवारों के हाथों में सिमटकर रह जाएगी, जिससे नई सोच और नए नेतृत्व का रास्ता बंद हो जाएगा।”
क्या कांग्रेस पर भी निशाना?
हालांकि थरूर ने अपने बयान में किसी पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे कांग्रेस पर अप्रत्यक्ष हमला माना जा रहा है। क्योंकि कांग्रेस पर लंबे समय से वंशवाद के आरोप लगते रहे हैं। कई विश्लेषक मानते हैं कि थरूर के इस बयान से यह संदेश जाता है कि कांग्रेस के भीतर भी कई नेता संगठनात्मक सुधार और नई नेतृत्व पद्धति की मांग कर रहे हैं।
बता दें कि, शशि थरूर का यह बयान भारतीय राजनीति में एक अहम बहस को फिर से जीवित कर गया है — क्या भारत का लोकतंत्र परिवारों के इर्द-गिर्द घूमता रहेगा, या योग्यता और जनसेवा पर आधारित नई राजनीति की शुरुआत होगी? थरूर का कहना है कि भारत को अब “वंशवाद से योग्यता की ओर” कदम बढ़ाना होगा। जब तक राजनीति परिवारों की जायदाद बनी रहेगी, लोकतंत्र का सपना अधूरा ही रहेगा।
