भारतीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली में संसदीय स्थाई समितियों (Parliamentary Standing Committees) की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ये समितियां न केवल सरकार की नीतियों और विधेयकों पर गहन विचार-विमर्श करती हैं, बल्कि कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने का भी प्रमुख माध्यम होती हैं। हाल ही में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा संसदीय समितियों का पुनर्गठन किया गया, जिसके बाद यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है।
शशि थरूर की अहमियत और चुनौतियां
थरूर लंबे समय से कांग्रेस के एक मुखर और बौद्धिक नेता माने जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति पर उनकी गहरी पकड़ है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में थरूर ने कई बार पार्टी लाइन से अलग विचार भी रखे हैं, इसके बावजूद कांग्रेस ने उन पर भरोसा जताते हुए विदेश मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति की कमान दूसरी बार उन्हें ही सौंप दी।
कांग्रेस ने क्यों नहीं किया फेरबदल?
कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने चारों अध्यक्षों को बरकरार रखना कई मायनों में एक रणनीतिक निर्णय माना जा रहा है। एक तरफ यह पार्टी में स्थिरता और निरंतरता का संदेश देता है, वहीं दूसरी ओर यह यह भी बताता है कि कांग्रेस इन नेताओं की विशेषज्ञता और अनुभव पर भरोसा करती है।
आने वाले महीनों में संसदीय समितियां कई अहम विषयों पर विचार करने वाली हैं। विदेश मंत्रालय की समिति अंतरराष्ट्रीय संबंधों, वैश्विक संघर्षों, भारत-अमेरिका रिश्तों, भारत-चीन सीमा विवाद और भारत की बहुपक्षीय कूटनीति पर अध्ययन करेगी। वहीं कृषि से जुड़ी समिति किसानों की आय, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की चुनौतियों पर विमर्श करेगी।
