आज हम बात करेंगे एक ऐसी दुनिया की, जहां शादी का मतलब सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि एक लंबी जद्दोजहद बन गया है। कल्पना कीजिए, एक ऐसा समाज जहां लोग शादी को एक किताब की तरह देखते हैं – शुरुआत तो सुंदर होती है, लेकिन पन्ने पलटते-पलटते कहानी बोरियत में डूब जाती है। और इसी बोरियत से जन्म लेती है एक ऐसी तलाश, जो बाहर की दुनिया में खुशी ढूंढने को मजबूर कर देती है। हम बात कर रहे हैं एक ऐप की, जो शादीशुदा जिंदगी के राज़ों को खोलने का दावा करती है – बिना नाम लिए, बिना शोर मचाए।
सप्ताहभर पहले ही एक सर्वे आया है, जो बताता है कि 40 साल से ऊपर के लोग अब इस ऐप पर दोस्ती की तलाश में आ रहे हैं। हां, दोस्ती – वो जो शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक हो। सर्वे कहता है कि 51 प्रतिशत लोग महसूस करते हैं कि उनके रिश्ते में भावनाओं की गहराई कम हो गई है। 44 प्रतिशत को लगता है, बातचीत की कमी है। और 42 प्रतिशत तो बस थोड़ी उत्तेजना या खुद की ग्रोथ चाहते हैं। ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं। ये वो आवाजें हैं, जो सालों से दबी हुई थीं। खासकर वो लोग, जो तलाकशुदा हैं या विधुर, वो अब प्लेटोनिक रिश्तों की तलाश में हैं – सुरक्षित, बिना जजमेंट के।
सवाल ये है, क्या ये दोस्ती वाकई दोस्ती है, या शादी की खालीपन को भरने का एक और बहाना?
अब थोड़ा पीछे चलें। मई 2025 में एक और बड़ा सर्वे हुआ था, जिसमें 1500 से ज्यादा लोगों से पूछा गया – जेनएक्स, मिलेनियल्स और जेनजेड कैसे देखते हैं प्यार को? नतीजे चौंकाने वाले। 64 प्रतिशत ने माना कि रिलेशनशिप में रहते हुए भी सोशल मीडिया पर फ्लर्ट करते हैं। और जेनएक्स के 49 प्रतिशत तो अक्सर ही ऐसा करते हैं।
33 प्रतिशत ने कहा, वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी ही बेवफाई का सबब है। मिलेनियल्स में ये आंकड़ा 42 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।
सोशल मीडिया? वो तो रिश्तों का दुश्मन बन गया है – 68 प्रतिशत मानते हैं कि ये रिश्तों को तोड़ता है।
और ओपन रिलेशनशिप? 41 प्रतिशत तैयार हैं इसे अपनाने को। ये आंकड़े बताते हैं, भारत के शहरों में, खासकर टियर-1 और टियर-2 में, पुरानी परंपराएं टूट रही हैं। लोग अब इमोशनल फुलफिलमेंट के लिए बेवफाई को एक रास्ता मान रहे हैं। लेकिन क्या ये खुशी लाएगा, या सिर्फ और जटिलताएं?अपडेट्स की बात करें तो, 2024 में इस ऐप ने 270 प्रतिशत की ग्रोथ की। भारत में अब 3 मिलियन यूजर्स हैं – ग्लोबल बेस का 25 प्रतिशत।
महिलाएं 58 प्रतिशत हैं, 128 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ। 40 प्रतिशत महिलाएं रोज 45 मिनट बिताती हैं। बेंगलुरु टॉप पर, उसके बाद मुंबई, कोलकाता, दिल्ली। छोटे शहर जैसे भोपाल, वडोदरा, कोच्चि में भी अब ये फैल रहा है।
2025 का लक्ष्य?
5 मिलियन यूजर्स। नए फीचर्स आ रहे हैं – प्राइवेसी के लिए डिस्क्रीट मोड, पैनिक बटन, प्राइवेट फोटो एल्बम्स। सर्च फिल्टर्स एडवांस्ड, वर्चुअल गिफ्ट्स, क्रश अलर्ट्स। महिलाओं के लिए फ्री, पुरुषों के लिए क्रेडिट सिस्टम। सेफ्टी पर जोर – 58 प्रतिशत महिलाएं कहती हैं, ये दूसरे ऐप्स से ज्यादा सुरक्षित है।लेकिन दोस्तों, ये सब देखकर मन में सवाल उठते हैं। शादी जो सदियों से एक पवित्र बंधन मानी जाती थी, वो अब क्यों इतनी कमजोर हो गई? क्या ये ऐप लोगों को आजादी दे रहा है, या बस उनकी कमजोरियों का फायदा उठा रहा है? जेनरेशन्स बदल रही हैं, लेकिन क्या मूल्य भी बदल जाएंगे? सोचिए, क्योंकि ये सिर्फ एक ऐप की कहानी नहीं – ये हमारी समाज की वो सच्चाई है, जो बाहर आ रही है।