काठमांडू। नेपाल में जहां सरकार ने गुरुवार को एक ऐसा फैसला लिया, जिसने लाखों लोगों की जुबान पर सवाल खड़े कर दिए। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, और हाँ, ट्विटर, यानी X—ये सब अब नेपाल में बैन। जी हाँ, 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ताला। वजह? नेपाल का संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय कहता है कि इन प्लेटफॉर्म्स ने पंजीकरण की शर्त पूरी नहीं की। तो क्या ये डिजिटल दुनिया पर सरकारी लगाम का नया अध्याय है, या फिर कुछ और?
क्या हुआ, कैसे हुआ?
नेपाल सरकार ने इन 26 प्लेटफॉर्म्स को पंजीकरण के लिए समय दिया था। समय बीता, लेकिन फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, X, रेडिट, लिंक्डइन जैसे बड़े नामों ने पंजीकरण नहीं कराया। दूसरी तरफ, टिकटॉक, वाइबर, विटक, निमबज और पोपो लाइव ने समय रहते कागजी कार्रवाई पूरी कर ली, सो वो बच गए। टेलीग्राम और ग्लोबल डायरी की फाइलें अभी मंत्रालय के टेबल पर धूल खा रही हैं। मंत्रालय के प्रवक्ता गजेंद्र कुमार ठाकुर ने बड़ी साफगोई से कहा, “जो नियम मानेगा, उसे उसी दिन बहाल कर देंगे।” लेकिन सवाल ये है—ये नियम क्या हैं, और इनका पालन न करने की कीमत क्या नेपाल के लोग चुकाएंगे?
70 लाख प्रवासियों का क्या?
अब जरा असल मसले पर आते हैं। नेपाल के इस फैसले का सबसे तगड़ा झटका उन 70 लाख नेपाली युवाओं को लगेगा, जो विदेशों में पढ़ाई और नौकरी के लिए बसे हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रल्हाद रिजाल की मानें, तो ये युवा फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिए अपने परिवार, अपने गाँव-घर से जुड़े रहते हैं। अब जब ये प्लेटफॉर्म्स बंद, तो वो माँ-बाप से वीडियो कॉल पर कैसे बताएंगे कि वो सऊदी की गर्मी में ठीक हैं? या ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी में उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है? ये सवाल सिर्फ तकनीक का नहीं, दिलों का है।
कंपनियों की खामोशी और सवाल
अब तक मेटा, गूगल, या X की तरफ से कोई बयान नहीं आया। ये चुप्पी अपने आप में एक कहानी कहती है। क्या ये कंपनियाँ नेपाल जैसे छोटे बाजार को गंभीरता से नहीं ले रही? या फिर वो नियमों को मानने के मूड में नहीं हैं? अगर पंजीकरण की शर्तें पूरी होती हैं, तो शायद ये सेवाएँ जल्द बहाल हो जाएं। लेकिन तब तक नेपाल का डिजिटल आसमान बादलों से घिरा रहेगा।
नेपाल और अफगानिस्तान: दो संकट, एक सुर्खी
एक तरफ नेपाल का ये सोशल मीडिया बैन, दूसरी तरफ पड़ोस में अफगानिस्तान का भूकंप। दोनों खबरें आज वैश्विक पटल पर छाई हैं। नेपाल में जहाँ डिजिटल दुनिया पर ताले लग रहे हैं, वहीं अफगानिस्तान में भूकंप ने इंसानी जिंदगियों को हिला दिया है। लेकिन सवाल वही—क्या सरकार का ये कदम नेपाल के लोगों को और अकेला कर देगा? क्या ये डिजिटल आजादी पर चोट है, या फिर सिर्फ नियम-कानून की बात?
दोस्तों, ये खबर सिर्फ नेपाल की नहीं, हम सबकी है। आज नेपाल में सोशल मीडिया बैन हुआ, कल कहीं और हो सकता है। सवाल ये नहीं कि फेसबुक या यूट्यूब कब वापस आएंगे। सवाल ये है कि जब सरकारें डिजिटल दुनिया पर नकेल कसेंगी, तो आम आदमी की आवाज कहाँ जाएगी? आप क्या सोचते हैं? हमें बताइए, क्योंकि खबरें सिर्फ सुनाने के लिए नहीं, सोचने के लिए भी होती हैं।