लोकसभा का सत्र सोमवार को खास तरह की ऊर्जा से भरा रहा। अवसर था राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने का। सदन में राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक यात्रा, उसके महत्व और स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भूमिका पर विस्तृत चर्चा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता और कई सांसदों ने अपने विचार रखे।
भावगीत नहीं हो सकता जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि जनों को प्रेरित करता हो और जीवन आहुत करने के लिए लोग निकल पड़ते हैं। पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग हमारे यहां पैदा होते थे जो इस प्रकार के भावगीत की रचना कर सकते थे। यह विश्व के लिए अजूबा है।” उन्होंने कहा कि इसके बारे में हमें गर्व से कहना चाहिए तो दुनिया भी मानना शुरु करेगी।
भाजपा पर निशाना—“राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्र-विवादी पार्टी”
अपने संबोधन के दौरान अखिलेश यादव ने भारतीय जनता पार्टी पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा—
“जो खुद को राष्ट्रवादी बताते हैं, वे वास्तव में राष्ट्र-विवादी पार्टी हैं। राष्ट्र को जोड़ने का काम होना चाहिए, तोड़ने का नहीं।”
उनका यह बयान सदन में उपस्थित सदस्यों के बीच चर्चा का विषय बन गया। अखिलेश यादव का यह रुख स्पष्ट था कि राष्ट्रगीत का महत्व तभी सार्थक होगा जब उसे सामाजिक न्याय, समान अवसर और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ जोड़ा जाए।
पीएम मोदी का संबोधन—
राष्ट्रगीत के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। उन्होंने कहा कि यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है। पीएम मोदी ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित इस गीत को स्वतंत्रता संग्राम का “स्वर” बताया।
चर्चा के दौरान कई सांसदों ने वंदे मातरम् की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी याद किया। 1875 में लिखे गए इस गीत को बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल किया। उसकी रचना उस समय हुई जब अंग्रेजी शासन अपने अत्याचारों की चरम सीमा पर था। यह गीत लोगों में एक नई चेतना, एक नई ऊर्जा और स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ संकल्प जगाने में सफल रहा।
बता दें कि, लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर हुई चर्चा न केवल ऐतिहासिक थी, बल्कि प्रतीकात्मक रूप से समकालीन राजनीति के कई पहलुओं को भी सामने लाई। एक ओर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की सांस्कृतिक शक्ति और ऐतिहासिक गौरव पर जोर दिया, तो दूसरी ओर अखिलेश यादव ने सामाजिक न्याय, व्यवहारिक राष्ट्रवाद और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य की चुनौतियों को रेखांकित किया।
