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कृषि जगत के लिए एक नई क्रांति की शुरुआत मानी जा रही है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, डेविस (UC Davis) के वैज्ञानिकों ने CRISPR-Cas9 जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए गेहूं में ऐसा आनुवंशिक बदलाव किया है, जिससे यह फसल हवा से नाइट्रोजन लेकर स्वयं खाद बनाने में सक्षम हो सकेगी। यह खोज न केवल वैज्ञानिक जगत में उत्साह का केंद्र बनी हुई है, बल्कि दुनियाभर के किसानों, खासकर विकासशील देशों के कृषि तंत्र के लिए भी आशा की नई किरण साबित हो रही है।

प्लांट जेनेटिक इंजीनियरिंग’ के जाने-माने विशेषज्ञ और ICAR-NBPGR के पूर्व निदेशक प्रो. के.सी. बंसल ने आजतक की सहयोगी साइट ‘किसान तक’ से बातचीत में कहा,… पिछले कई दशकों से साइंटिस्ट्स रिसर्च में लगे थे कि जिस तरह से दलहन में रूट नोड्यूल्स के द्वारा नाइट्रोजन फिक्स होती है, उसी तरह से धान में भी एटमॉस्फ देना है

✔ विशेषज्ञ बोले—कृषि क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि

‘प्लांट जेनेटिक इंजीनियरिंग’ के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और ICAR-NBPGR के पूर्व निदेशक प्रो. के.सी. बंसल ने इस उपलब्धि को कृषि क्षेत्र का भविष्य बदलने वाली सफलता बताया है। उन्होंने ‘किसान तक’ से बातचीत में कहा कि यदि गेहूं और धान जैसी फसलों में यह क्षमता स्थायी रूप से विकसित हो जाती है, तो विश्वभर में नाइट्रोजन खाद पर निर्भरता कम होगी। इससे किसानों की लागत घटेगी और मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी।

प्रो. बंसल के अनुसार, अब तक वैज्ञानिक दलहनी फसलों के ‘नोड्यूल फॉर्मेशन जीन’ को अनाज वाली फसलों में सक्रिय करने की दिशा में प्रगति कर रहे थे, लेकिन पहली बार परिणाम इतने स्पष्ट और आशाजनक नजर आए हैं। यह आने वाले समय में कृषिगत आत्मनिर्भरता को नए आयाम देगा।

बता दें कि, गेहूं और धान जैसी वैश्विक मुख्य फसलों में नाइट्रोजन फिक्सेशन क्षमता का विकास कृषि विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जा रहा है। यह न केवल खेती को अधिक टिकाऊ, सस्ती और पर्यावरण-अनुकूल बनाएगा, बल्कि भविष्य में खाद्य उत्पादन प्रणालियों को भी पूरी तरह बदल सकता है।ॉवैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यह खोज आधुनिक कृषि में अगली “हरित क्रांति” की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।

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