पंचायत वेबसीरीज जब पहली बार हम सभी के सामने आई थी उसने बॉलीवुड की चकाचौंध और बनावटी सीन के आगे अपनी गजब की छाप छोड़ी थी। पहली बार इस वेबसीरीज ने मुंबई वालों को ये भी बता दिया था कि भैया अब समय बदल गया है अब फालतू की कहानी और दिखावे की फिल्में नहीं चलने वाली है। अगर देश और दुनिया की नजरों में जगह बनानी है तो स्टोरी में दम होना चाहिए और कलाकारों में वास्तविक कलाकारी। खैर अब चौथे सीजन में ये वेबसीरीज क्या कमाल दिखाएगी, क्या है पूरी कहानी समझते हैं।
पंचायत यानी वो सीरीज जो अपने पहले सीजन से सीधे दिल में उतरी। OTT की दुनिया में अगर किसी वेब सीरीज ने असली गांव की मिट्टी की खुशबू शहरों तक पहुंचाई है, तो वह है पंचायत । लेकिन इस बार सीजन 4 ने उसी खुशबू को कुछ हद तक हवा में उड़ा दिया है। फुलेरा, वह गांव जो पहले दर्शकों के दिलों में एक मधुर हास्य और यथार्थ का अद्भुत मेल लेकर बसा था, इस बार चुनावी दंगल में फंस कर अपना असली रंग खो बैठा है।
इस बार कहानी चुनाव के इर्द-गिर्द घूमती है – मंजू देवी और क्रांति देवी आमने-सामने हैं, लेकिन असली लड़ाई उनके पतियों की चालबाज़ियों में छुपी है। शुरू में मज़ा आता है, अगर आपको गांव की निंदा रस पसंद हो, लेकिन जल्दी ही लगने लगता है कि कहानी को खींचा जा रहा है। क्योंकि शुरूआत में यही सब आपको देखने को मिलेगा।
कैसी है पंचायत सीरीज-
ये पंचायत के सारे सीजन के मुकाबले सबसे कमजोर सीजन है।इस सीजन में आपको ऐसे सीन नहीं मिलेंगे जो याद रह जाएं. ऐसा कोई सीन नहीं है जिसे देखकर आप पेट पकड़कर हंसें।इस सीजन को अगले सीजन की भूमिका के तौर पर ही देखा सकता है। एक्टिंग सबकी अच्छी है, लेकिन राइटिंग कमजोर है।
पिछले कुछ दिनों से मैं अपने गांव यानी फुलेरा में हूं। यहां रहकर जो एहसास हो रहा है, वो ‘पंचायत’ के चौथे सीज़न से कहीं ज्यादा असली है। असली गांव की तरह यहां 24 घंटे बिजली की आंख-मिचौली जारी है। ग्राम प्रधान और खंड विकास कार्यालय के बीच योजनाएं कागज़ों पर ही दौड़ रही हैं। मनरेगा का काम अब ठेके पर हो रहा है। स्कूलों में अध्यापक अभी से इस चिंता में डूबे हैं कि जनगणना में उन्हें कितना बोझ उठाना पड़ेगा। पंचायतों और स्कूलों के विलय को लेकर चर्चा भी जोरों पर है। और गांव की राजनीति? वो तो मंदिर के बरामदे से लेकर मिठाई की दुकान तक ज़िंदा है।
इतने उम्दा कलाकारों – जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुवीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, सानविका, सुनीता राजवार – के बावजूद जब सीरीज़ दिल को छू न सके, तो अफसोस होता है। और जब हफ्ता भर पहले ट्रेलर दिखाकर बिना ढंग से तारीख बताए शो रिलीज़ कर दिया जाए, तो शक भी होता है कि क्या अब ये सिर्फ नाम के लिए बनाई जा रही है? कुल मिलाकर, ‘पंचायत सीज़न 4’ उस असली फुलेरा से दूर लगती है, जो हमारे दिल में बसा है।