बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात ने इस सियासी सरगर्मी को और भी बढ़ा दिया है। यह मुलाकात सिर्फ शिष्टाचार भर नहीं मानी जा रही, बल्कि इसके पीछे बिहार की सत्ता समीकरणों को साधने की गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी है।
दरअसल, अमित शाह ने बीते दिनों कई ऐसे बयान दिए हैं जिसको लेकर बिहार में नीतीश कुमार पर कई बार राजनीति गर्म हो चुकी है. हाल में ही उन्होंने फिर कहा है कि एनडीए विधायक दल बिहार का सीएम चुनेगा. ऐसे में बिहार में राजनीतिक तापमान चढ़ता गया और महागठबंधन में इसमें अपने लिए मौका देखा और साफ-साफ कहा कि नीतीश कुमार को किनारे करने की रणनीति पर भाजपा काम कर रही है. लेकिन।
बता दें कि, राजनीतिक जानकारों के अनुसार, अमित शाह की यह मुलाकात महज राजनीतिक शिष्टाचार नहीं बल्कि ‘विश्वास बहाली’ की प्रक्रिया का हिस्सा है। बीते महीनों में अमित शाह और भाजपा नेताओं के कुछ बयानों से यह संदेश गया था कि भाजपा, नीतीश कुमार को धीरे-धीरे साइडलाइन करने की रणनीति बना रही है।
एनडीए में तालमेल की मजबूरी
बिहार में एनडीए का वोट बैंक अभी भी जटिल है। भाजपा का संगठन मजबूत है, लेकिन राज्य की सामाजिक और जातीय राजनीति में जेडीयू की पकड़ अभी भी अहम मानी जाती है। यादव, कुर्मी, और कुछ अति पिछड़े वर्गों में नीतीश की स्वीकार्यता भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होती है।
महागठबंधन की नजरें इस गठजोड़ पर
नीतीश कुमार और अमित शाह की मुलाकात ने महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वाम दलों) के खेमे में चिंता बढ़ा दी है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने तंज कसते हुए कहा, “नीतीश जी कभी इधर, कभी उधर—जनता अब समझ चुकी है।” वहीं कांग्रेस के राज्य प्रभारी ने कहा कि “भाजपा और जेडीयू की मुलाकात दिखाती है कि बिहार में सत्ता के लिए सिद्धांतों की कोई जगह नहीं है।”
चुनावी संदेश और भाजपा की रणनीति
अमित शाह ने अपनी सारण की जनसभा में साफ कहा कि “नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए चुनाव लड़ेगा।” उनके इस बयान के दो राजनीतिक मायने हैं—पहला, भाजपा ने फिलहाल नीतीश को ‘फेस’ के रूप में स्वीकार किया है; और दूसरा, पार्टी यह दिखाना चाहती है कि एनडीए में कोई अंदरूनी कलह नहीं है।
बता दें कि, अमित शाह और नीतीश कुमार की मुलाकात बिहार की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत के तौर पर देखी जा रही है। यह मुलाकात न सिर्फ एनडीए में तालमेल और भरोसे की बहाली का संकेत देती है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की रणनीतिक सोच को भी उजागर करती है।
