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बिहार में जब सूर्य उपासना का महापर्व छठ आता है, तो हर गली-मोहल्ले, हर घाट और हर घर में एक ही आवाज़ गूंजती थी — शारदा सिन्हा की। सुपली में फल-सुपारी, दऊरे में प्रसाद और बहंगिया में आस्था की लहर होती थी, लेकिन इन सबके बीच उस माहौल को आत्मा देने वाली चीज़ थी — शारदा सिन्हा की मधुर, सजीव और भक्ति से भीगी आवाज़। आज भी जब छठ पर्व नजदीक आता है, तो लाखों प्रवासी बिहारी और भारतीयों के दिल में एक कसक उठती है — “अब वो शारदा सिन्हा नहीं हैं…”

छठ और शारदा सिन्हा — एक-दूसरे के पर्याय

छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव है। गंगा किनारे डूबते सूरज को अर्घ्य देते समय जब “कांच ही बांस के बहंगिया…” बजता था, तो पूरा वातावरण पवित्रता से भर जाता था। यह गीत शारदा सिन्हा की आवाज़ में ही अपनी संपूर्णता पाता है।

प्रवासी बिहारी और शारदा सिन्हा की भावनात्मक डोर

दिल्ली, मुंबई, दुबई या न्यूयॉर्क में रहने वाले लाखों बिहारी जब छठ के दिन अपने मोबाइल पर शारदा सिन्हा का गीत चलाते हैं, तो वो सिर्फ संगीत नहीं सुन रहे होते — वो अपने बचपन, अपने आंगन, अपनी माँ की पूजा की याद में लौट रहे होते हैं।

यह वही भावनात्मक जुड़ाव है जिसे शारदा सिन्हा ने दशकों पहले समझा था। उन्होंने लोकगीतों को जनमानस के साथ जोड़ा और साबित किया कि संस्कृति को जिंदा रखने के लिए सिर्फ मंच नहीं, भावना की जरूरत होती है।

बदलते समय में खोती लोकसंवेदना

आज सोशल मीडिया और ग्लोबलाइजेशन के दौर में त्योहारों की चमक तो बढ़ी है, लेकिन उनकी आत्मा धीरे-धीरे खो रही है। अब रील्स पर भक्ति गीतों की जगह डीजे रीमिक्स बजते हैं। इंस्टाग्राम पर वायरल होने वाले ट्रेंड्स में छठ गीतों की मौलिकता कहीं गुम हो गई है।

संगीत जो समय से परे है

शारदा सिन्हा की गायकी का एक बड़ा कारण उनकी निष्ठा थी। वे हमेशा कहती थीं — “संगीत वो नहीं जो सुना जाए, संगीत वो है जो महसूस किया जाए।”
उनका हर गीत एक संवाद है — देवता से, प्रकृति से, और सबसे बढ़कर खुद से।

बता दें कि, उनके गीतों में नदी बहती है, खेत झूमते हैं, और मन झुक जाता है श्रद्धा में। यही कारण है कि उनका संगीत कालातीत (timeless) बन गया है। गीत बदल सकता है, तकनीक बदल सकती है, पर भावनाएं नहीं। शारदा सिन्हा ने जिस तरह से संगीत को आत्मा से जोड़ा, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। छठ जैसे पर्व उनके बिना अधूरे भले लगें, लेकिन उनकी आवाज़ में बसी भक्ति और संवेदना हमेशा जीवित रहेगी।

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