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अफगानिस्तान की स्थिरता और क्षेत्रीय शांति को लेकर एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटनाक्रम सामने आया है। मंगलवार को मॉस्को में आयोजित ‘मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशंस की बैठक ने इस मुद्दे पर क्षेत्रीय देशों की एकजुटता को स्पष्ट रूप से दर्शाया। इस बैठक में भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए।

हालांकि बयान में बगराम का नाम नहीं लिया गया, लेकिन यह ट्रम्प की योजना के खिलाफ साफ संदेश था। भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय में अफगानिस्तान और पाकिस्तान मामलों के डिप्टी सेक्रेटरी जेपी सिंह इस बैठक शामिल हुए थे।

भारत और पाकिस्तान की असामान्य एकजुटता

अत्यधिक तनावपूर्ण संबंधों वाले भारत और पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर अनोखी एकजुटता दिखाई। दोनों देशों ने तालिबान के समर्थन में और अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के विरोध में एक ही रुख अपनाया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दुर्लभ अवसर है जब दोनों पड़ोसी देश किसी क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दे पर समान दृष्टिकोण रखते हैं।

भारत की रणनीति और कूटनीतिक महत्व

भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के अफगानिस्तान और पाकिस्तान मामलों के डिप्टी सेक्रेटरी जेपी सिंह इस बैठक में शामिल हुए। भारत ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि अफगानिस्तान की स्थिरता और विकास केवल क्षेत्रीय देशों के सहयोग और स्थानीय प्रशासन पर निर्भर है।

बता दें कि, मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशंस ने यह स्पष्ट कर दिया कि अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति केवल क्षेत्रीय सहयोग, कूटनीति और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी पर निर्भर करेगी। भारत और पाकिस्तान का तालिबान समर्थन में एक साथ खड़ा होना इस बात का सबूत है कि कभी-कभी क्षेत्रीय हितों के लिए विरोधी देश भी साझा दृष्टिकोण अपना सकते हैं।

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