समाचार मिर्ची

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मुंबई। महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में हलचल मची है। वजह यह है कि तमाम मतभेदों को भुलाकर उद्धव और राज ठाकरे एक साथ आ सकते हैं। शिवसेना ने सोमवार को अपने मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में भी इसका उल्लेख किया और लिखा कि दोनों को राज्य के हित में कदम उठाना चाहिए। अगर जहर से अमृत निकलता है तो महाराष्ट्र को इसकी जरूरत है। आगे लिखा कि एक साथ आने के लिए इच्छा शक्ति की जरूरत है।

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे के मुखिया राज ठाकरे एक साथ आ सकते हैं। दोनों भाइयों के बीच बातचीत चल रही है। अब शिवसेना के मुखपत्र सामना में भी इसका जिक्र किया गया है। इसमें लिखा है कि महाराष्ट्र के व्यापक हित में राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की खबर ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है।


आने वाली पीढ़ी माफ नहीं करेगी


संपादकीय में आगे लिखा है कि अगर जिंदगी बहस और झगड़ों में बीतती है तो महाराष्ट्र की आने वाली पीढ़ियां उन्हें माफ नहीं करेंगी। महाराष्ट्र को और क्या चाहिए? भाजपा की राजनीति ‘इस्तेमाल करो और फेंक’ देने की है।

भाजपा ने सिर्फ जहर बोने का काम किया

भाजपा नेताओं पर निशाना साधते हुए लिखा कि मोदी, शाह और फडणवीस देश के नहीं हैं तो महाराष्ट्र के कैसे हो सकते हैं? उन्होंने सिर्फ राजनीति में जहर बोने का काम किया है। महाराष्ट्र में कृष्णा-कोयना नदियों के प्रवाह को शुद्ध करना उनका काम नहीं है। सभी को उस शुद्ध प्रवाह में उतरना चाहिए। उन्होंने प्रयागराज के गंदे, अपवित्र प्रवाह में सभी को उतारा और धर्म का व्यापार किया। यह अजीब और जहरीला दौर चल रहा है। मराठी लोगों को सबक सीखना चाहिए और हर कदम पर सावधानी बरतनी चाहिए।


आगे लिखा कि विष से अमृत निकलता है तो महाराष्ट्र को इसकी जरूरत है। महाराष्ट्र के व्यापक हित में राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की खबर ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। इस खबर ने जहां कई लोगों को खुश किया तो वहीं कई लोगों के पेट में दर्द भी पैदा हो गया।

बहुत सफल नहीं रही राज ठाकरे की सियासत

राज ठाकरे की राजनीति अब तक अनिश्चित और बहुत सफल नहीं रही है। शिवसेना छोड़ने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से एक नई पार्टी बनाई। उस समय उन्हें नगर निगम और विधानसभा चुनावों में काफी जनसमर्थन मिला। मगर बाद में उनकी पार्टी को गिरावट का सामना करना पड़ा।
मराठी एकता को हुआ नुकसान

बहुत सफल नहीं रही राज ठाकरे की सियासत

राज ठाकरे की राजनीति अब तक अनिश्चित और बहुत सफल नहीं रही है। शिवसेना छोड़ने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नाम से एक नई पार्टी बनाई। उस समय उन्हें नगर निगम और विधानसभा चुनावों में काफी जनसमर्थन मिला। मगर बाद में उनकी पार्टी को गिरावट का सामना करना पड़ा।


भारतीय जनता पार्टी, एकनाथ शिंदे और अन्य लोग ‘राज’ के कंधे पर बंदूक रखकर शिवसेना पर हमला करते रहे। इससे राज की पार्टी को राजनीतिक रूप से कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन मराठी एकता को भारी नुकसान हुआ।राज का रुख मोदी और शाह को महाराष्ट्र में पैर नहीं रखने देने का था। राज का कहना था कि शाह और मोदी महाराष्ट्र के हितों के बारे में नहीं सोचते हैं। भाजपा का हिंदुत्व नकली है। भाजपा ने राज को इस नकली हिंदुत्व के जाल में फंसाया और चीजें बिगड़ने लगीं।

मामला सिर्फ इच्छा का है

अब उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि चाहे जो भी हो… हमारे बीच की बहस और झगड़े किसी भी बड़ी बात की तुलना में मामूली हैं। महाराष्ट्र बहुत बड़ा है। एक मराठी व्यक्ति के अस्तित्व के लिए ये चीजें बहुत महत्वहीन हैं। मुझे साथ आना और साथ रहना बहुत मुश्किल नहीं लगता। मामला सिर्फ इच्छा का है।

मराठी हितों के लिए हुआ शिवसेना का जन्म

राज जिसे हमारे बीच विवाद बता रहे हैं, वह उद्धव ठाकरे को लेकर है। यह किस तरह का विवाद है? यह कभी सामने नहीं आया। राज मराठी लोगों की बात करते रहे और शिवसेना का जन्म मराठी लोगों के हित के लिए हुआ था और उद्धव ठाकरे ने उस हित को नहीं छोड़ा। तो क्या कोई विवाद है? केवल भाजपा, मिंधे (एकनाथ शिंदे) और अन्य लोगों ने राज की ओर से बोलना शुरू किया। इन लोगों ने विवाद शुरू किया।

उद्धव ने भी बढ़ाया मजबूत कदम

इसलिए अगर भाजपा, मिंधे को दूर रखा जाता है तो विवाद कहां रहेगा? साथ आने की इच्छा शक्ति होनी चाहिए। राज जो कहते हैं, वह सच है, लेकिन वह किसकी इच्छा की बात कर रहे हैं?। जैसे ही राज ने अपनी इच्छा व्यक्त की, उद्धव ठाकरे भी पीछे नहीं रहे।


उन्होंने महाराष्ट्र के व्यापक हित में एक मजबूत कदम आगे बढ़ाया। उद्धव ठाकरे ने यह रुख अपनाया कि अगर कोई छोटा-मोटा विवाद है तो मैं भी सब कुछ छोड़कर महाराष्ट्र के हित के लिए साथ काम करने को तैयार हूं। संपादकी में आगे लिखा कि यह महाराष्ट्र की जनता की भावनाओं का फूंका हुआ बिगुल है।








































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