पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। जहां एक तरफ गठबंधों की जीत-हार पर चर्चा है, वहीं सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है—*इस चुनाव का सबसे बड़ा लूजर कौन?
और जवाब है: प्रशांत किशोर
जी हां, वही प्रशांत किशोर, जो कभी देश के बड़े-बड़े नेताओं की जीत की रणनीति बनाते थे, आज खुद के मैदान में शून्य पर सिमट गए।
तीन साल की मेहनत, करोड़ों का खर्च, परिणाम – 00 सीटें
- 2019 में छोड़ा स्ट्रैटेजिस्ट का कंफर्ट जोन
- 2022 से गांव-गांव घूमे, धूप-धूल में तपे
- जन सुराज पार्टी के नाम पर दर्जनों रैलियां, सैकड़ों सभाएं
- करोड़ों रुपये* खर्च—प्रचार, टीम, सर्वे, सब पर पानी फिरा
फिर भी, जन सुराज को एक भी सीट नहीं मिली
नतीजा: 00 — यानी डबल जीरो!
दो महीने नहीं, तीन साल का संघर्ष
प्रशांत किशोर कोई ‘सीजनल प्लेयर’ नहीं थे।
पिछले दो महीनों की रैलीबाजी नहीं,
पूरा तीन साल का अथक अभियान था—
फिर भी, जनता ने ठुकरा दिया।
राजनीतिक विश्लेषक बोले:
प्रशांत किशोर ने साबित कर दिया कि रणनीति बनाने और खुद लड़ने में फर्क होता है।
अब सवाल ये है—क्या ये जन सुराज का अंत है?
या प्रशांत किशोर की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का अंत ?
बिहार की जनता ने फैसला सुना दिया है:
रणनीति बनाने वाले को वोट नहीं, परिणाम चाहिए।
