अच्छी चर्चा के बीच, सितारे ज़मीन पर सिनेमाघरों में आ ही गई। यह फ़िल्म आमिर खान की 2007 की क्लासिक तारे ज़मीन पर का आध्यात्मिक सीक्वल है, जिसने पहली बार डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के संघर्ष को बड़े पर्दे पर उतारा था।
मुंबई। फिल्मी सितारे ज़मीन पर को लोग खूब पसंद कर रहे हैं लोग आमिर खान की एंक्टिग की जमकर तारीफ कर रहे हैं तो वहीं फिल्म धमाल मचा रही है। लंबे समय के बाद पर्दे पर लौटे आमिर खान ने लोगों का खूब मनोरंजन किया है। संवेदनशील मुद्दा होने के बावजूद ये फिल्म सबका दिल जितने में कामयाब रही। ब्लॉकबस्टर या फुस्स ये फिल्म ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
बता दें कि, फिल्म की हानी गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) से शुरू होती है, जो एक जोशीला लेकिन घमंडी जूनियर बास्केटबॉल कोच है, जिसे उसके मनमौजी और थोड़ा लापरवाह व्यवहार के कारण निलंबित कर दिया जाता है। सजा के तौर पर, उसे न्यूरोडाइवर्जेंट युवाओं वाली बास्केटबॉल टीम को कोचिंग देने का काम सौंपा जाता है। शुरुआत में काम को खारिज करने वाले गुलशन की यात्रा तब मोड़ लेती है जब वह टीम से मिलता है: सुनील, सतबीर, लोटस, गुड्डू, शर्मा जी, करीम, राजू, बंटू, गोलू और हरगोविंद – प्रत्येक अलग-अलग न्यूरोलॉजिकल स्थितियों से जूझ रहे हैं।
फिल्म का केंद्रीय संवाद — “साहब, अपना-अपना नॉर्मल होता है” — बहुत सादगी के साथ एक गहरी बात कहता है। ये वही लाइन है जो फिल्म की आत्मा को दर्शाती है। इस संवाद के ज़रिये फिल्म समाज में ‘नॉर्मल’ की पारंपरिक परिभाषा पर सवाल उठाती है और समावेशन (inclusion) की अवधारणा को सहजता से प्रस्तुत करती है।