भोपाल। आज अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस है। सोशल मीडिया पर हैशटैग चल रहे हैं – #MenToo, #RealMenDontCry, #मर्दकोदर्दनहींहोता। लेकिन ठीक उसी दिन भोपाल से एक आँकड़ा सामने आया है, जो चुपके से सब कुछ कह जाता है। इस साल सिर्फ़ भोपाल की ‘भाई’ हेल्पलाइन पर 4640 पुरुषों ने फोन किया। पिछले साल ये संख्या आधी से भी कम थी। यानी हर रोज़ औसतन 21 पुरुषों ने डायल किया और कहा – “बचाइए… मैं घर में कैद हूँ।” ये वो पुरुष हैं जिनकी पत्नी ने प्रताड़ना का केस किया, फिर कोर्ट ने मेंटेनेंस ठोंक दिया। फिर उसी पत्नी ने घर में घुसने नहीं दिया।
नतीजा – माँ-बाप अलग, बच्चे अलग, नौकरी चली गई, और किराए का कमरा भी छिनने की कगार पर। फोन पर उनकी आवाज़ काँपती है – “सर, मैंने कुछ गलत नहीं किया, फिर भी मैं सड़क पर हूँ।”
हेल्पलाइन के लोग बताते हैं – कई कॉल रात दो-तीन बजे आती हैं। कई लोग फोन पर रोते हैं, फिर शर्मिंदगी में कहते हैं, “माफ़ कीजिए, मर्द रोता नहीं… बस गला भर आया।” ये वही पुरुष हैं जिन्हें समाज ने सिखाया था – मार खाओ तो हँसते रहो, थप्पड़ पड़े तो गाल आगे कर दो, कानून तुम्हारे खिलाफ़ हो तो भी चुप रहो – क्योंकि बोलोगे तो लोग कहेंगे “मर्द बनो”। आज पुरुष दिवस पर बड़े-बड़े भाषण होंगे। कोई कहेगा – मर्द मजबूत होता है। कोई कहेगा – मर्द कमज़ोर नहीं पड़ता। लेकिन भोपाल की उस हेल्पलाइन का फोन आज भी बज रहा है। 4640 बार बजा चुका है।
और हर बार कोई मर्द फुसफुसाकर कह रहा है – “भाई… अब मजबूत नहीं रहा जाता।”
आज के समय में हम सभी की जिम्मेंदारी है कि अपने आसपास के परिवेश में देखें कि कोई इस तरह की समस्या से जूझ तो नहीं रहा है। क्योंकि अक्सर पति-पत्नी के बीच विवाद के मुद्दे छोटे होते हैं लेकिन आपस में सही से बातचीत नहीं होने के कारण विवाद कानून की चौखट पर जाकर न्याय की गुहार लगाने लगते हैं। कई बार तो कानून की चौखट तक भी ऐसे मुद्दे नहीं पहुंच पाते हैं आत्महत्या जैसे कदम भी लोग उठा लेते हैं। ऐसी नौबत न आए इसिलिए अपनों का ध्यान रखें.. हालचाल पूछें ध्यान रखें।
