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पटना | बिहार की राजनीति में इस बार एक नई और खामोश क्रांति देखने को मिल रही है — महिला वोट बैंक की क्रांति। यह न तो किसी जाति पर आधारित है, न किसी धार्मिक पहचान पर, बल्कि यह नीतीश कुमार की सामाजिक इंजीनियरिंग और लाभार्थी मॉडल की परिणति है।2025 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से महिलाओं का मतदान पुरुषों की तुलना में लगभग 8.82% अधिक रहा, उसने एग्जिट पोल्स के सभी समीकरणों को बदल दिया। यही वजह है कि लगभग हर प्रमुख सर्वे में NDA को 130 से 165 सीटों तक मिलने का अनुमान जताया गया है।

महिला सशक्तिकरण की जमीनी हकीकत

बिहार में अब लगभग हर गांव में जीविका समूह सक्रिय हैं।
ये समूह महिलाओं को बैंकिंग, बचत, छोटे व्यवसाय और माइक्रो-क्रेडिट से जोड़ रहे हैं।
इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिला योगदान तेजी से बढ़ा है।
2020 के बाद से अब तक 2.5 लाख से अधिक महिलाएं ग्राम संगठन और पंचायत स्तर पर नेतृत्वकारी भूमिका निभा रही हैं।

बताते चले कि, एग्जिट पोल्स का रुझान साफ बताता है कि महिला वोटर NDA की “साइलेंट मेजरिटी” हैं।वे प्रचार में नहीं दिखतीं, सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं होतीं, लेकिन मतदान के दिन तय कर देती हैं कि सत्ता में कौन आएगा। यह वोट बैंक अब भावनात्मक नहीं, बल्कि प्रदर्शन-आधारित (Performance-based) हो गया है। महिलाओं की यह राजनीतिक भागीदारी केवल चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि समाजशास्त्रीय बदलाव का संकेत है।अब ग्रामीण महिलाएं स्थानीय प्रशासन, शिक्षा, और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर भी मुखर हो रही हैं।यह “वोटिंग बिहेवियर” आने वाले वर्षों में बिहार की नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करेगा।

जब जातीय समीकरण डगमगाते हैं, गठबंधन टूटते हैं और एंटी-इनकंबेंसी हावी होती है, तब यही महिला वोटर खामोशी से आती है,वोट डालती है और सत्ता की दिशा बदल देती है।नीतीश कुमार ने इसे समझा, संवारा और स्थायी सामाजिक शक्ति बना दिया।
2025 का चुनाव यही बताता है कि बिहार की राजनीति में अब “महिलाएं सिर्फ मतदाता नहीं, बदलाव की वाहक” बन चुकी हैं।

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