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कोलकाता। पश्चिम बंगाल की सियासत एक बार फिर सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीकों के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। इस बार केंद्र में है राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’, जो अपने 150 वर्ष पूरे कर रहा है। भाजपा ने इस अवसर को न केवल सांस्कृतिक उत्सव के रूप में बल्कि राजनीतिक रणनीति के रूप में भी इस्तेमाल करने की पूरी तैयारी कर ली है। पार्टी ने पूरे पश्चिम बंगाल में 1100 स्थानों पर ‘वंदे मातरम्’ के सामूहिक गान का कार्यक्रम घोषित किया है। इसके जरिए भाजपा ‘वंदे मातरम्’ को बंगाली अस्मिता और हिंदू गौरव से जोड़ने की कोशिश कर रही है — और यही ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) के लिए राजनीतिक पेच बन गया है।

वंदे मातरम राष्ट्रीय अस्मिता के साथ-साथ बंगाली अस्मिता से जुड़ा हुआ है। बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखा व रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया वंदे मातरम् न सिर्फ 1905 के बंगाल विभाजन, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज बना था। जाहिर है 30 मुस्लिम आबादी वाले पश्चिम बंगाल में वंदे मातरम् के मूल स्वरूप का स्वीकार और विरोध दोनों तृणमूल कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा पहले से हिंदू वोटबैंक को साधने की कोशिश में जुटी है।

वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ – सांस्कृतिक उत्सव या राजनीतिक अवसर?

‘वंदे मातरम्’ 1875 में बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखा गया था। बाद में रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे आवाज दी और यह राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रतीक बन गया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में ‘वंदे मातरम्’ आंदोलन की पहचान बना।अब जब इसके 150 साल पूरे हो रहे हैं, भाजपा इसे केवल सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि बंगाल की अस्मिता और राष्ट्रवाद की पुनर्परिभाषा के रूप में प्रस्तुत कर रही है।

बता दें कि, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिम बंगाल में यह मुद्दा ध्रुवीकरण (polarization) को गहराई दे सकता है।
2021 के चुनाव में भाजपा ने 77 सीटें जीतकर टीएमसी को चुनौती दी थी। अब वह इस बार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को अपने अभियान का केंद्र बना रही है। हालांकि विपक्ष का कहना है कि राज्य में बेरोजगारी, आर्थिक मंदी और कानून-व्यवस्था जैसे असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए भाजपा यह मुद्दा उठा रही है।

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