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2 नवंबर 2025 की शाम नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने इतिहास रच दिया। जैसे ही हरमनप्रीत कौर ने दक्षिण अफ्रीका की बल्लेबाज़ नादिन डिक्लर्क का कैच लपका, पूरा स्टेडियम ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा। यह सिर्फ एक जीत नहीं थी, बल्कि भारतीय महिला क्रिकेट के उस सफर की परिणति थी, जो “बराबर सैलरी” की ऐतिहासिक पहल से शुरू हुआ था।

BCCI का साहसिक फैसला जिसने तस्वीर बदल दी

अक्टूबर 2022 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने दुनिया का ध्यान खींच लिया। अपनी 15वीं एपेक्स काउंसिल मीटिंग में बोर्ड ने घोषणा की कि महिला और पुरुष क्रिकेटरों को समान मैच फीस दी जाएगी। यह फैसला खेल जगत में लैंगिक समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।

इस नीति के तहत महिला खिलाड़ियों को टेस्ट मैच के लिए ₹15 लाख, वनडे के लिए ₹6 लाख और टी20 के लिए ₹3 लाख का भुगतान तय किया गया — ठीक वैसे ही जैसे पुरुष टीम को मिलता है। भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला प्रमुख क्रिकेट राष्ट्र बन गया, जिसने “बराबर काम, बराबर वेतन” के सिद्धांत को खेल के मैदान पर लागू किया।

वर्ल्ड कप जीत: नीति से परिणाम तक का सफर

2025 का महिला वर्ल्ड कप भारतीय क्रिकेट के लिए नई सुबह लेकर आया। भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में जिस अनुशासन, फिटनेस और एकजुटता का परिचय दिया, वह अभूतपूर्व था। कोचिंग ढांचे से लेकर एनालिटिक्स और फिटनेस सुविधाओं तक — बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट के लिए वैसी ही व्यवस्थाएं खड़ी कीं जैसी पुरुष टीम को उपलब्ध हैं।

यह वर्ल्ड कप जीत दरअसल एक “सिस्टमेटिक रिवोल्यूशन” का परिणाम है — जहां संरचना, संसाधन और सम्मान, तीनों में समानता आई। यह साबित करता है कि जब अवसर समान मिलते हैं, तो परिणाम भी समान शानदार हो सकते हैं।

महिला खिलाड़ियों के लिए नए युग की शुरुआत

बीसीसीआई ने केवल समान वेतन ही नहीं दिया, बल्कि महिला क्रिकेट के लिए घरेलू टूर्नामेंट्स को भी मज़बूत किया। “वुमेन्स प्रीमियर लीग (WPL)” की शुरुआत ने खिलाड़ियों को पेशेवर मंच दिया, जहां वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनीं।

अब महिला खिलाड़ियों को वह अवसर और संसाधन मिल रहे हैं, जिनसे वे अपने खेल पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकें। इस बदलाव का असर मैदान पर दिखा — फिटनेस लेवल बढ़ा, रणनीति और मानसिक मजबूती में सुधार हुआ, और सबसे अहम — आत्मविश्वास का स्तर आसमान छू गया।

खेल से समाज तक असर

समान सैलरी की यह पहल सिर्फ खेल के दायरे में सीमित नहीं रही। इसका प्रभाव समाज के दूसरे हिस्सों तक गया। यह संदेश गया कि अगर किसी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के समान मेहनत करती हैं, तो उन्हें भी समान पारिश्रमिक मिलना चाहिए।

महिला क्रिकेटरों की यह सफलता लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई है, जो अब क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी या किसी भी खेल में करियर बनाने का सपना देख रही हैं। माता-पिता की सोच में भी बदलाव आया है — अब बेटियों को खेल में आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिल रही है।

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