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नई दिल्ली। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 1 अगस्त 1920 दिन एक अहम मोड़ साबित हुआ। इस दिन महात्मा गांधी ने देशवासियों को अंग्रेजी शासन के खिलाफ संगठित करने और भारत को स्वतंत्र कराने की दिशा में पहला व्यापक जनांदोलन – असहयोग आंदोलन शुरू किया।

शहरों से लेकर गांव देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन से पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई। हुक्मरान की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1920 में एक अगस्त को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की। आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़ताल हुईं जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्य दिवसों का नुकसान हुआ।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

1919 में पारित रॉलेट एक्ट ने देशभर में असंतोष की आग भड़का दी थी। इस कानून ने अंग्रेजों को यह अधिकार दिया कि वे बिना मुकदमे और बिना किसी सबूत के किसी भी व्यक्ति को जेल में डाल सकते थे। इसके विरोध में गांधी जी ने देशभर में सत्याग्रह चलाया, जिसका चरम रूप जलियांवाला बाग नरसंहार (13 अप्रैल 1919) के रूप में सामने आया।

असहयोग आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता यात्रा को निर्णायक मोड़ दिया इस आंदोलन ने जनता में स्वतंत्रता की लौ प्रज्ज्वलित की और आने वाले दशकों में सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन की नींव रखी।

आज, 1 अगस्त का यह दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं थी, बल्कि असंख्य बलिदानों और अहिंसक संघर्ष का परिणाम थी।

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