अमेरिका 33 साल बाद एक बार फिर परमाणु हथियारों की टेस्टिंग (Nuclear Weapon Testing) करने जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) को परमाणु परीक्षणों को तुरंत शुरू करने का आदेश दिया। ट्रम्प ने कहा कि यह टेस्टिंग रूस और चीन के बराबर स्तर पर की जानी चाहिए, ताकि अमेरिका वैश्विक सैन्य संतुलन में पीछे न रह जाए।
ट्रम्प बोले – रूस और चीन तेजी से आगे बढ़ रहे हैं
ट्रम्प ने अपने पोस्ट में लिखा –
“दूसरे देशों की परमाणु हथियार परीक्षण गतिविधियों को देखते हुए मैंने डिपार्टमेंट ऑफ वॉर को आदेश दिया है कि अमेरिका तुरंत बराबरी के आधार पर परमाणु हथियारों की टेस्टिंग शुरू करे। रूस दूसरे नंबर पर है और चीन तीसरे पर, लेकिन अगले पांच साल में ये बराबरी पर आ सकते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि अमेरिका हमेशा आगे रहे।”
यह बयान अमेरिकी रणनीतिक नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका ने पिछले 33 वर्षों से किसी भी पूर्ण परमाणु हथियार परीक्षण को अंजाम नहीं दिया है।
अमेरिका ने आखिरी बार 23 सितंबर 1992 को नेवादा में परमाणु परीक्षण किया था। इसी साल तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने भूमिगत परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने की घोषणा की थी। रूस और चीन ने भी 1990 के दशक के बाद से ऐसे परीक्षण रोक दिए थे। अब ट्रम्प इसी परीक्षण को फिर से शुरू करने की बात कह रहे हैं।
रूस और चीन की बढ़ती परमाणु गतिविधियां
रूस पिछले कुछ वर्षों से अपने हाइपरसोनिक न्यूक्लियर मिसाइल प्रोग्राम पर तेजी से काम कर रहा है। हाल ही में उसने ‘सार्मत-II’ नामक मिसाइल का परीक्षण किया, जिसे “डूम्सडे वेपन” कहा जा रहा है।
वहीं चीन ने भी अपनी परमाणु क्षमताओं में बड़ा निवेश किया है और उसके पास अब लगभग 500 से अधिक सक्रिय परमाणु हथियार माने जा रहे हैं।
अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अगर अमेरिका वास्तविक परीक्षण नहीं करता है तो तकनीकी दृष्टि से वह इन देशों से पीछे रह सकता है।
परमाणु परीक्षण क्या होता है?
पूर्ण परमाणु परीक्षण (Full Nuclear Weapon Test) में वास्तविक परमाणु बम का विस्फोट किया जाता है ताकि उसकी विनाशक क्षमता, रेडिएशन प्रभाव और तकनीकी दक्षता का आकलन किया जा सके।
ऐसे परीक्षण आम तौर पर भूमिगत या वायुमंडलीय स्तर पर किए जाते हैं। हालांकि इनसे पर्यावरण और जनस्वास्थ्य पर गंभीर खतरा होता है।
33 साल बाद अमेरिका का परमाणु परीक्षणों की ओर लौटना केवल एक तकनीकी निर्णय नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति और शक्ति संतुलन का संकेत है।
ट्रम्प का यह आदेश रूस और चीन को संदेश देने के लिए है कि अमेरिका अब भी सुपरपावर की स्थिति बरकरार रखना चाहता है।