भारत दुनिया के उन प्रमुख देशों में से एक है, जहां गेहूं लोगों के भोजन और किसानों की आय का महत्वपूर्ण आधार है। चावल के बाद गेहूं देश की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली फसल है। यही वजह है कि भारत के विभिन्न राज्यों में किसान गेहूं की खेती को प्राथमिकता देते हैं। समय के साथ वैज्ञानिक शोध और कृषि नवाचारों की बदौलत कई ऐसी उन्नत किस्में सामने आई हैं, जो पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक पैदावार, बेहतर गुणवत्ता और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं।
बता दें कि, एचडी सीएसडब्ल्यू 18 एक उन्नत गेहूं की किस्म है, जो किसानों के लिए उच्च पैदावार और बेहतर गुणवत्ता का विकल्प प्रदान करती है. यह किस्म मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में रबी मौसम के दौरान बोई जाती है. इसकी औसत अवधि लगभग 150 दिन होती है, जिससे यह समय पर पकने वाली किस्मों में गिनी जाती है. और इस किस्म खासियत इसकी अधिक उपज क्षमता और रोग प्रतिरोधक शक्ति है. यह किस्म पीले व भूरे रतुए तथा झुलसा जैसी बीमारियों के प्रति सहनशील हैं. इस वजह से किसानों को कम लागत पर बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है. इसकी औसत उपज 62.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज की गई है, जबकि अनुकूल परिस्थितियों में यह 70.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम है.
किसानों के लिए फायदे
इन उन्नत किस्मों की खेती अपनाने से किसानों को न केवल पैदावार में बढ़ोतरी मिलती है, बल्कि वे बाजार में बेहतर दाम भी प्राप्त कर सकते हैं। डुरम गेहूं जैसी किस्में बेकरी और पास्ता उद्योग में अधिक मूल्य पर बिकती हैं, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
जानकारी दे दें कि, भारत में गेहूं की खेती किसानों की आर्थिक रीढ़ है। एचडी 3086, पूसा अनमोल HI 8737 और HD CSW 18 जैसी उन्नत किस्में किसानों को बेहतर पैदावार, कम लागत और रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ बड़ी राहत देती हैं। यदि इन किस्मों को सही वैज्ञानिक प्रबंधन और तकनीकी तरीकों से उगाया जाए, तो किसान न केवल अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा में भी बड़ा योगदान दे सकते हैं।
